Monday, April 2, 2012

मर्द को अपने खान पान को भी ‘औरत ओरिएंटिड‘ रखना चाहिए

पत्नी की संतुष्टि उसका स्वाभाविक अधिकार है Women's Natural Right

वंदना गुप्ता जी ने हिंदी ब्लॉग जगत को एक पोस्ट दी है ‘संभलकर, विषय बोल्ड है‘
हमने उनकी इस पोस्ट पर अपनी टिप्पणी देते हुए कहा है कि

वंदना गुप्ता जी ! आपने नर नारी संबंधों के क्रियात्मक पक्ष की जानकारी बहुत साफ़ शब्दों में दी है। यह सबके काम आएगी। तश्बीह, तम्सील और बिम्बों के ज़रिये कही गई बात को केवल विद्वान ही समझ पाते हैं और फिर उनके अर्थ भी हरेक आदमी अलग अलग ले लेता है। आपका साहित्य सरल है इसे हरेक आदमी समझ सकता है। पुरूषों को यह बात ज़रूर जाननी चाहिए कि शारीरिक संबंधों की अदायगी भी क़ायदे से होनी चाहिए जैसे कि धार्मिक कर्मकांड और इबादत में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि कहीं भी कोई कमी न रह जाए।
ईश्वर तक पहुंचने के लिए सीढ़ी माने जाने वालों से पत्नी के लिए पति और पति के लिए पत्नी भी हैं।
ईश्वर की प्रसन्नता चाहना भारतीय संस्कृति का अभिन्न तत्व है और अरबी संस्कृति का भी। संपूर्ण विश्व की आध्यात्मिक संस्कृति का मूल तत्व यही है। पत्नी भी प्रसन्न है कि नहीं, यह भी देखना बहुत ज़रूरी है। मां बाप गुरू अतिथि और पत्नी राज़ी हैं तो समझ लीजिए कि आपसे आपका रब भी राज़ी है।
पत्नी को राज़ी करना भी निहायत ही आसान है।
पत्नी चाहती क्या है ?
सिर्फ़ दो बोल प्रशंसा के,
जैसे कि ...
जब से तुम इस घर में आई हो मेरी ज़िंदगी संवर गई है।
तुम्हारे प्यार की क़द्र मेरे दिल में बहुत गहराई तक है।

बस हो गई नारी तुम्हारी, दिल से सदा के लिए।
लेकिन यह तारीफ़ दिल से निकलनी चाहिए।
औरत समर्पण करती है और अपने आप को मिटाती है तो उसे तारीफ़ मिलनी भी चाहिए।

मर्द को अपने खान पान को भी ‘औरत ओरिएंटिड‘ रखना चाहिए। मर्द को मछली और मुर्ग़ा ज़रूर खाना चाहिए। अगर मर्द शाकाहार का अभ्यस्त हो और सीधे मांस न खा सकता हो तो उसे दूध, शहद, बादाम, पनीर, लहसुन, अदरक, आंवला और एलोवेरा का सेवन ज़रूर करना चाहिए। बदन में जितनी ज़्यादा जान होगी, वह अपने महबूब के साथ उतना ही लंबा सफ़र कर सकता है।
महबूब को चांद के पार ले जाने में एलोवेरा का जवाब नहीं है। एलोवेरा के सेवन के बाद नारी तो संतुष्ट हो ही जाती है लेकिन मर्द संतुष्टि के अहसास को रिपीट करने का बल तुरंत ही पाता है।
चरम सुख के शीर्ष पर औरत का प्राकृतिक अधिकार है, हमारा यह उदघोष सदा से ही है।

इतनी लंबी टिप्पणी सिर्फ़ इसलिए कि जो भी पढ़े उसका वैवाहिक जीवन पूरी तरह संतुष्ट हो। संतोष परम धन है और हम भारत के युवक युवकों को ही नहीं बल्कि वृद्धों और वृद्धाओं को भी परम धनी देखना चाहते हैं। विधवा और विधुर सब इस धन से समृद्ध हों।
यह परम धन पास हो तो फिर लौकिक धन मुद्रा की कमी नर नारी को परेशान नहीं करती। उच्च के सामने तुच्छ का मूल्य गौण हुआ करता है।

2 comments:

  1. बहुत ही ज्ञानपरक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  2. स्त्री की संतुष्टि इस अर्थ में भी मायने रखती है कि जो स्त्री को भी संतुष्ट न कर सका,वह रब को संतुष्ट करने की तरक़ीब कैसे निकालेगा भला। इसलिए,शुरूआत बाहर से हो,तो भीतर की यात्रा और आसान हो जाती है।

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