बथुआ में प्रायः शरीर के सभी पोषक तत्व पाए जाते है | मौसम के अनुसार उपलब्ध इसका सेवन करके छोटे-छोटे रोगों से अपना बचाव स्वयं किया जा सकता है | वैज्ञानिक शोधों से पता चल चूका है कि जिन सब्जियों को शीधे सूर्य से प्रकाश प्राप्त होता है,वे पेट में जाकर विषाणु-कीटाणुओं का नाश करती है | बथुआ भी उन्ही सब्जी में से एक है जिन्हें सूर्य का प्रकाश सीधे मिलता है |
विभिन्न प्रकार के पौष्टिक तत्वों से सुसज्जित बथुआ एक सस्ता साग है | विशेषकर यह ग्रामीण क्षेत्र में सहजता से प्राप्त होने वाला प्रकृति का एक अनमोल तोहफा है | ग्रामीण इलाकों में बथुआ कि कोई उपियोगित नहीं है,जबकि प्रक्रति ने इसमें सभी प्रकार के अच्छाइयाँ समाहित कर रखी है | भोजन में इसकी मौजदगी से कई प्रकार के रोगों से बच सकते है | यह बाजारों में दिसंबर से मार्च तक आसानी से मिल जाता है |
बथुआ अपने आप गेहूं व जौ के खेतों में उग जाता है | इसके पते त्रिकोनाकर व नुकीले होते है , इसके पौधे पर सफ़ेद,हरे व कुछ लालिमा लिए छोटे-छोटे फुल होते है | बीज काले रंगे के सरसों से भी महीन होते है | पकने पर बीज खेत में गिर जाता है और साल भर तक जमीन के अन्दर पड़े होने के बाद अनुकूल जलवायु व परिस्थितियां मिलने पर स्वतः उग आते है |
बथुआ के बारे में प्राचीन आयुर्वेद ग्रन्थ में भी उल्लेख मिलता है | आयुर्वेद में इसकी दो प्रजातियाँ है ,एक गौड़ बथुआ जिसके पते कुछ बड़े आकर तथा लालिमा लिए होते है ,जो अक्सर सरसों ,गेहूं आदि के खेत में प्राप्त होता है | दूसरा है,यवशाक जिसके पतों पर लालिमा नहीं होती, पते भी पहले जाती के अपेक्षा कुछ छोटे होते है,जो अक्सर जौ के खेतों में अधिकतर मिलता है इसीलिए इसे यवशाक कहते है |
बथुआ को संस्कृत में वस्तुक,क्षारपत्र ( पतों में खरापर के वजह से ) शाकराट ( सागों का राजा ) ,हिंदी में बथुआ ,पंजाबी में बाथू, बंगाली में बेतुवा, गुजराती में वाथुओ,
महारास्त्र में चाकवत, और अंग्रेजी में ह्वाईट गुज फुट ( White goose foot ) कहते है ,इसका लैटिन नाम चिनोपोडियम अल्बम ( Chenopodium album ) है |
बथुआ में 70% जल होता है , इसके अन्दर पारा, लौह, क्षार, कैरोटिन व विटामिन C आदि खनिज तत्व पाए जाते है | भाव प्रकाश में इसके गुणों का उल्लेख में लिखा है कि बथुआ क्षारयुक्त, स्वादिष्ट, अग्नि को तेज करने वाला तथा पाचनशक्ति को बढ़ानेवाला है |
दीपनं पाचनं रुच्यं लघु शुक्रबलप्रदनम |
सरं प्लीहास्त्रपितार्शः कृमिदोषत्रयापहम ||
बथुआ का शाक पचने में हल्का ,रूचि उत्पन्न करने वाला, शुक्र तथा पुरुषत्व को बढ़ने वाला है | यह तीनों दोषों को शांत करके उनसे उत्पन्न विकारों का शमन करता है | विशेषकर प्लीहा का विकार, रक्तपित, बवासीर तथा कृमियों पर अधिक प्रभावकारी है |
Source : http://forums.abhisays.com/showthread.php?t=3840
मेरा प्रिय आहार तो था ही आज इसके गुणों से भी भरपूर परिचय हुआ।
ReplyDeleteपौष्टिक और पसंदीदा साग है !
ReplyDeleteजिन सब्जियों को शीधे सूर्य से प्रकाश प्राप्त होता है.....
ReplyDelete-----इसका क्या अर्थ है....क्या किसी सब्जी को सूर्य का प्रकाश नहीं भी मिलता है ...या चुपके चुपके मिलता है...य इन्डाइरेक्ट...तिरछे तिरछे ???
इतना उपयोगी और सेहतमंद बथुआ गाँवो में सहज ही उपलब्ध है, गुणकारी बथुआ को यदि हम अपने खान पान में शामिल कर ले तो बहुत सारी स्वास्थ्य समस्याओं से बच सकते है ,उपयोगी जानकारी के लिए साधुवाद
ReplyDeleteUse healthy and cheap leaf of bathua which is easily available during winter season that is most nutritious. It also fights against most of the common deceases.
ReplyDeleteUse Bathua saag and be healthy