अकसर लोग कहते हैं कि हम जीने के लिए खाते हैं , खाने के लिए नहीं जीते। इस स्टेटमंट में खानपान के प्रति उपेक्षा का भाव छिपा हुआ है।
अच्छा खाना मतलब महंगा खाना नहीं , बल्कि हेल्दी खाना है। रोजमर्रा की भागदौड़ और तनाव से भरी जीवनशैली में डाइट पर ध्यान दिया जाना खासा जरूरी है। सौरभ द्विवेदी ने टॉप न्यूट्रिशनिस्ट्स से बात कर पता लगाई मेट्रो जीवनशैली में सही खुराक:
क्या है न्यूट्रिशन
खाना खाने का साइंस ही न्यूट्रिशन है। खाने में ज्यादा से ज्यादा साबुत अनाज शामिल करें। ताजे फलों और सब्जियों को वरीयता दें और मौसमी फल व सब्जियां बहुतायत में खाएं। मौसमी फल शरीर की जरूरतों को ज्यादा बेहतर तरीके से पूरा करते हैं और कोल्ड स्टोरेज के फलों की तुलना में ज्यादा पौष्टिक भी होते हैं। खाने में बहुत ज्यादा बदलाव की जरूरत नहीं है। पारंपरिक भोजन प्रणाली ही हमारे शरीर के लिए मुफीद है। न्यूट्रिशन के बारे में सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि इसके लिए लोगों को अपने खाने में पूरी तरह से बदलाव करना पड़ता है और कई चीजें खाना बंद करना पड़ता है। दिक्कत खाने से नहीं , जरूरत से ज्यादा खाने से होती है।
स्वस्थ रहने के बेसिक प्रिंसिपल हैं: डाइट , एक्सरसाइज और स्ट्रेस मैनिजमंट यानी बेहतर खाना खाएं , रोजाना कम से कम 45 मिनट तक एक्सरसाइज करें और खुद को तनावमुक्त रखने के हर मुमकिन उपाय करें। तनाव कम करने के लिए भरपूर नींद बेहद जरूरी है। आम तौर पर बच्चों को 10 घंटे और बड़ों को 6-7 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए। संतुलित आहार के साथ संतुलित जीवनशैली की जरूरत को भी समझना होगा।
क्या है न्यूट्रिशन
खाना खाने का साइंस ही न्यूट्रिशन है। खाने में ज्यादा से ज्यादा साबुत अनाज शामिल करें। ताजे फलों और सब्जियों को वरीयता दें और मौसमी फल व सब्जियां बहुतायत में खाएं। मौसमी फल शरीर की जरूरतों को ज्यादा बेहतर तरीके से पूरा करते हैं और कोल्ड स्टोरेज के फलों की तुलना में ज्यादा पौष्टिक भी होते हैं। खाने में बहुत ज्यादा बदलाव की जरूरत नहीं है। पारंपरिक भोजन प्रणाली ही हमारे शरीर के लिए मुफीद है। न्यूट्रिशन के बारे में सबसे बड़ी गलतफहमी यह है कि इसके लिए लोगों को अपने खाने में पूरी तरह से बदलाव करना पड़ता है और कई चीजें खाना बंद करना पड़ता है। दिक्कत खाने से नहीं , जरूरत से ज्यादा खाने से होती है।
स्वस्थ रहने के बेसिक प्रिंसिपल हैं: डाइट , एक्सरसाइज और स्ट्रेस मैनिजमंट यानी बेहतर खाना खाएं , रोजाना कम से कम 45 मिनट तक एक्सरसाइज करें और खुद को तनावमुक्त रखने के हर मुमकिन उपाय करें। तनाव कम करने के लिए भरपूर नींद बेहद जरूरी है। आम तौर पर बच्चों को 10 घंटे और बड़ों को 6-7 घंटे की नींद जरूर लेनी चाहिए। संतुलित आहार के साथ संतुलित जीवनशैली की जरूरत को भी समझना होगा।
पानी कितना पिएं
-पानी के इस्तेमाल को लेकर तमाम तरह के दावे किए जाते हैं। पानी का अहम काम शरीर को डिटॉक्सिफाई यानी विषैले तत्वों को शरीर से बाहर निकालना है। आमतौर पर दिन में दो-ढाई लीटर फ्लुइड की जरूरत शरीर को होती है। इसके बड़े हिस्से की पूर्ति पानी के जरिए होती है। पानी शरीर में ऊर्जा का संचार करता है और हम इसे पीते ही बेहतर महसूस करते हैं। आज की जीवनशैली के लिहाज से देखा जाए तो पानी का महत्व और भी बढ़ जाता है। ज्यादातर वक्त एसी ऑफिसों में काम करने की वजह से शरीर को प्यास का एहसास नहीं होता। ऐसे में खुद से ध्यान देकर पानी पीने की जरूरत है।
-सुबह-सवेरे भरपेट पानी पीने पर कई योगाचार्य जोर देते हैं , लेकिन न्यूट्रीशन एक्सपर्ट कहते हैं कि सुबह बहुत ज्यादा पानी पीने पर एक्सरसाइज करने में दिक्कत आती है।
-शराब पीनेवालों को ज्यादा पानी की जरूरत होती है। अल्कोहल की वजह से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। ऐसे लोग सुबह सिरदर्द की शिकायत करते हैं। पानी पीने से इसमें निश्चित तौर पर कुछ राहत महसूस की जाती है।
खाना खाने के दौरान पानी: खाना खाने के पहले कितना भी पानी पी सकते हैं। खासतौर पर वजन कम करने की कवायद में लगे लोग इस ट्रिक का इस्तेमाल करते हैं। खाना खाने के पहले पानी पीने से भूख कम लगती है। खाने के दौरान कुछ घूंट पानी पिया जा सकता है , लेकिन खाने के बाद अगले 45 मिनट से लेकर एक घंटे तक पानी न पिएं।
कई डाइटीशियन पानी के फैक्टर को इग्नोर करते हैं। वे पानी को जरूरी न्यूट्रिएंट नहीं मानते। लेकिन अमेरिका में सबसे पहले डॉक्टर पानी की सलाह देते हैं। रोजाना 10-12 ग्लास पानी पीना चाहिए। नारियल पानी , नीबू पानी , लस्सी-मट्ठा या सिर्फ पत्ती वाली चाय भी अच्छे लिक्विड हैं।
मीठे से परेशान
हम रोजाना जो भी खाना खाते हैं , उसमें शामिल पदार्थ मसलन अनाज , फल , सब्जियों आदि में शरीर की जरूरत के लायक शुगर होती है। इसलिए अगर डायरेक्ट शुगर न भी ली जाए तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। शुगर शरीर में एक्स्ट्रा कैलरी की तरह होती है और इस कैलरी का यूज न होने पर यह फैट में तब्दील हो जाती है।
मौसमी फल बेहतर
फल शरीर को पोषण देने में अहम रोल निभाते हैं। मौसमी फल ज्यादा महंगे भी नहीं होते और शरीर को फायदा भी ज्यादा पहुंचाते हैं। कोशिश फलों को सीधे खाने की करें। उनके गूदे के जरिए शरीर में रोजाना 30-35 ग्राम फाइबर पहुंचना चाहिए। अगर फल उपलब्ध नहीं हैं तो फलों का ताजा जूस पीना चाहिए। कोई विकल्प न होने पर ही पैकिज्ड जूस पीना चाहिए। फलों को सुबह-सवेरे खाली पेट खाना भी कोई बहुत अच्छा विकल्प नहीं है। इसके बजाय दिन में स्नैक्स के तौर पर फल खाना ज्यादा बेहतर है। याद रखें कि फल खाने का विकल्प नहीं , बल्कि उसके पूरक हैं। दिन में तीन बार संतुलित आहार लेना बेहद जरूरी है। इनके बीच के गैप में फल खाने चाहिए।
मसला फाइबर का
फाइबर शरीर के डाइजेशन सिस्टम को सुचारु रूप से चलाने में बेहद मददगार होता है। रोजाना घरों में इस्तेमाल होने वाला आटा मिल का होता है। इसमें चना और दूसरे अनाजों का आटा मिला लेना चाहिए। आटे को छानने से भी बचना चाहिए। इसमें जितनी ज्यादा भूसी होगी , शरीर के लिए उतना ही अच्छा होगा। इसके अलावा दालें मसलन मूंग की दाल , लोबिया और राजमा भी फाइबर के अच्छे स्रोत हैं। कोशिश करनी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा साबुत अनाज खाया जाए।
डायबीटीज वालों का खानपान
- मोटे लोगों को ज्यादा दिक्कत होती है। वजन को बढ़ने न दें और कम कैलरी वाला खाना खाएं।
- खाने में वैरायटी बनाए रखने के लिए चीजें बदलते रहें। मसलन , कभी लंच में दलिया लिया जा सकता है तो कभी रोटी।
- कई बार में खाना खाएं। यानी एक बार में खाने की मात्रा कम रखें। इसे शरीर के अंदर का ग्लाइकैमिक स्टेटस मेंटेन रहता है।
- पूरे दिन के खाने को 5-6 हिस्सों में बांटा जा सकता है , लेकिन वजन कम करने के फेर में खाना मत छोड़ें।
डिनर के बाद दूध
अगर रात 8 बजे तक डिनर कर लिया है तो सोने से पहले एक कप दूध पीना अच्छा रहता है। लेकिन यह डिनर की क्वॉलिटी पर भी डिपेंड करता है। अगर डिनर में प्रोटीन देने वाला फूड मसलन फिश , चिकन या दाल ली है तो दूध लेना ठीक नहीं रहता। ऐसा करने पर रात में प्रोटीन का लोड बढ़ जाता है। लेकिन यह बात सभी पर समान तरीके से लागू नहीं की जा सकती। मसलन , प्रेग्नंट महिलाओं या खिलाड़ियों को ज्यादा प्रोटीन की जरूरत होती है। ऐसिडिटी की दिक्कत है तो ठंडा दूध ही लेना चाहिए। दूध हमेशा मलाई रहित स्किम्ड होना चाहिए।
बादाम का आया मौसम
बादाम व अखरोट बेस्ट नट्स हैं। इनमें ओमेगा 3 फैटी ऐसिड होता है , जो शरीर के लिए बहुत जरूरी है। ब्रेन के लिए भी यह जरूरी है। नट्स को तलना नहीं चाहिए। मूंगफली नट्स का बेहतर विकल्प नहीं है। इसके छिलके में एफ्ला टॉक्सिन होते हैं , जो शरीर के लिए नुकसानदेह है। दूसरी बात यह कि मूंगफली खाने के दौरान इसकी क्वांटिटी पर काबू नहीं रहता। इसके बजाय गुड़ की पट्टी खाना बेहतर है। बादाम हर फॉर्म में बेस्ट है , चाहे रोस्टेड हो या सादा। लेकिन फ्राइड और सॉल्ट कवर्ड फॉर्म में नहीं लेना चाहिए।
फास्ट का फंडा
पहले व्रत करने की सलाह इसलिए दी जाती थी ताकि लोग अपनी बॉडी डिटॉक्सिफाई कर सकें। लेकिन व्रत के दौरान भी पूरी तरह खाना छोड़ने के बजाय दही या फल खाने चाहिए। बेहतर तरीका यही है कि डॉक्टर से सलाह करके व्रत किया जाए। अगर ऐसा नहीं करते हैं तो लॉन्ग टर्म में नुकसान होता है।
आंवला क्यों खाएं ?
आंवला विटामिन सी का सबसे अच्छा सोर्स है। इसमें ऐंटी-ऑक्सिडंट भी होते हैं , जो हार्ट अटैक रोकते हैं और डायबीटीज़ में फायदा करते हैं। आंवला कैंसर प्रमोट करने वाली सेल्स को काटने में भी मददगार है। किसी को ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम है तो कच्चा आंवला खाना ठीक रहेगा।
लहसुन
लहसुन में ऐंटी-ऑक्सिडंट की प्रचुर मात्रा होती है। रोजाना लहसुन की एक या दो फांक खानी चाहिए। इससे हार्ट डिजीज़ की आशंका 25 से 50 फीसदी कम हो जाती है। यह डायबीटीज़ में भी मददगार होता है। यह ऐंटी ऑक्सिडंट का नेचरल सप्लिमंट हैं। लहसुन को कच्चा खाना ही बेहतर है। इसे खाने पर मुंह से आने वाली गंध से बचने के लिए खाने के बाद पानी पी सकते हैं या फिर कोई च्यूंगम चबा लें। बेहतर यह है कि लहसुन को चबाकर खाने के बजाय सीधे टैब्लेट की तरह निगल लें।
आंवला विटामिन सी का सबसे अच्छा सोर्स है। इसमें ऐंटी-ऑक्सिडंट भी होते हैं , जो हार्ट अटैक रोकते हैं और डायबीटीज़ में फायदा करते हैं। आंवला कैंसर प्रमोट करने वाली सेल्स को काटने में भी मददगार है। किसी को ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम है तो कच्चा आंवला खाना ठीक रहेगा।
लहसुन
लहसुन में ऐंटी-ऑक्सिडंट की प्रचुर मात्रा होती है। रोजाना लहसुन की एक या दो फांक खानी चाहिए। इससे हार्ट डिजीज़ की आशंका 25 से 50 फीसदी कम हो जाती है। यह डायबीटीज़ में भी मददगार होता है। यह ऐंटी ऑक्सिडंट का नेचरल सप्लिमंट हैं। लहसुन को कच्चा खाना ही बेहतर है। इसे खाने पर मुंह से आने वाली गंध से बचने के लिए खाने के बाद पानी पी सकते हैं या फिर कोई च्यूंगम चबा लें। बेहतर यह है कि लहसुन को चबाकर खाने के बजाय सीधे टैब्लेट की तरह निगल लें।
पनीर
पनीर की क्वॉलिटी उसके सोर्स पर डिपेंड करती है। फुल क्रीम दूध से बना पनीर बॉडी के लिए अच्छा नहीं होता। इसमें हाई और सेचुरेडेट फैट बहुत ज्यादा होते हैं। ये ऐसे फैट हैं , जो शरीर के लिए अच्छे नहीं होते। टोंड मिल्क से बने पनीर में काफी कैल्शियम और प्रोटीन रहता है। कच्चा पनीर खाना सबसे अच्छा है। प्रोसेस्ड पनीर जो पीत्सा जैसे फूड आइटमों में इस्तेमाल होता है , उसे खाने से परहेज करना चाहिए। प्रोसेस्ड पनीर को तैयार करते हुए सोडियम मिलाते हैं , जो सेहत के लिए अच्छा नहीं है। पनीर को ग्रिल करके या फिर कच्चा ही नमक और काली मिर्च डालकर खाएं।
डाइट रेगुलेशन
तेल का खेल: लोग पहले क्वांटिटी ऑफ ऑयल पर ध्यान देते थे। उनका मानना था कि कम तेल में खाना पकाने पर कोई समस्या नहीं हो सकती। लेकिन अब लोग तेल की क्वॉलिटी पर ज्यादा जोर देते हैं। ज्यादातर लोग रिफाइंड ऑयल या मूंगफली तेल इस्तेमाल करते हैं , जो शरीर के लिए हानिकारक है। जहां तक अच्छे तेल की बात है तो कई लोगों की धारणा है कि थोड़ी तादाद में देसी घी खाना सही होता है। मगर शैंपू की तरह तेल भी बदल-बदल कर इस्तेमाल करना चाहिए। सोयाबीन , सरसों या अलसी का तेल , जिसमें ओमेगा थ्री सही मात्रा में दिया गया है , जो हार्ट अटैक की आशंका कम करता है। एक इंसान को महीने में आधा लीटर तेल खाना चाहिए यानी रोजाना 3-4 छोटे चम्मच। वनस्पति तेल जैसे डालडा हाइड्रोजेलेट फैट होता है। सस्ता होने की वजह से लोग इसका इस्तेमाल करते हैं , लेकिन शरीर के लिए यह बहुत ज्यादा हानिकारक है। इसे खाना फौरन बंद कर दें।
जंक फूड को न: मोटापा और तनाव की सबसे बड़ी वजह हमारी भोजन शैली में बदलाव है। शारीरिक श्रम कम और पौष्टिक आहार की जगह बाजार का रेडीमेड फूड। इसमें जंक फूड की वजह से शरीर में फैट जैसे कुछ तत्व बहुत ज्यादा मात्रा में पहुंच जाते हैं , जबकि प्रोटीन और विटामिन की कमी हो जाती है। जंक फूड और कोल्ड ड्रिंक से जितना ज्यादा बच सकें , उतना ही बेहतर है।
आलू के आगे भी दुनिया: सब्जियों में भी आलू की बहुतायत एक बड़ी समस्या है। आलू कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च का स्रोत होता है। मझोले आकार का एक आलू एक चपाती के बराबर कैलरी देता है। लेकिन इसका ज्यादा मात्रा में सेवन शरीर में एक्स्ट्रा कैलरी यानी फैट ही बनाएगा।
रोटी करें कम: भारत में खाने से मतलब लगाया जाता है कि कितनी रोटियां या चावल खाया। हमारे यहां सब्जी और दाल को अलग से खाने का चलन नहीं है। खाने में साबुत अनाज तो होना चाहिए , लेकिन रोटी और चावल से पेट भरने के बजाय दाल , सलाद और हरी सब्जियों की मात्रा भी बढ़ानी चाहिए।
आलू के आगे भी दुनिया: सब्जियों में भी आलू की बहुतायत एक बड़ी समस्या है। आलू कार्बोहाइड्रेट और स्टार्च का स्रोत होता है। मझोले आकार का एक आलू एक चपाती के बराबर कैलरी देता है। लेकिन इसका ज्यादा मात्रा में सेवन शरीर में एक्स्ट्रा कैलरी यानी फैट ही बनाएगा।
रोटी करें कम: भारत में खाने से मतलब लगाया जाता है कि कितनी रोटियां या चावल खाया। हमारे यहां सब्जी और दाल को अलग से खाने का चलन नहीं है। खाने में साबुत अनाज तो होना चाहिए , लेकिन रोटी और चावल से पेट भरने के बजाय दाल , सलाद और हरी सब्जियों की मात्रा भी बढ़ानी चाहिए।
ब्राउन चावल बेहतर: रात के वक्त चावल खाने से परहेज करना चाहिए। बिना पॉलिश वाले ब्राउन चावल खाएं तो बेहतर है। पॉलिश्ड चावल में पोषक तत्व बहुत कम रह जाते हैं।
चाय का हाल: दूध डालकर उबाली गई चाय में न तो चाय की क्वॉलिटी रहती है और न ही दूध की। बेहतर होगा कि पानी में उबाल कर चाय पिएं और दूध अलग से पिएं। चाय उतनी बुरी नहीं है , लेकिन उबाल कर दूध के साथ पीने पर यह फायदा नहीं करेगी बल्कि कैंसर सेल्स को प्रमोट करेगी। ब्लैक टी या ग्रीन टी चाय के बेहतर ऑप्शन हैं। चाय में दूध डालें भी तो ज्यादा नहीं।
Source : http://hindi.economictimes.indiatimes.com/rssarticleshow/msid-4622017,prtpage-1.cms
upyogi jankari
ReplyDelete