'जैसा खाय अन्न वैसा होय मन' , यह उक्ति मशहूर है । आयुर्वेद और यूनानी तिब के विशेषज्ञ भी मानते हैं कि खान पान हमारे शरीर के साथ हमारे मन को भी प्रभावित करता है । होम्योपैथी में मिर्च से कैप्सीकम (capsicum) नामक दवा बनती है और उसकी मेटीरिया मेडिका में उसके मानसिक लक्षण भी लिखे होते हैं कि मन पर मिर्च क्या प्रभाव डालती है ?
'ऊँचाई से छलाँग' लगाने वाले का प्रमुख आहार लौकी का जूस था । उनके मन के निर्माण में लौकी का महत्वपूर्ण योगदान है । यह सारा ज़माना जानता है । ऐसे में यह प्रश्न उठना नेचुरल है कि क्या लौकी का जूस आदमी को बुज़दिल बना देता है ?अगर यह सही है तो हरेक क्राँतिकारी और सुधारक को लौकी के अत्यधिक सेवन से बचना चाहिए और जो लोग किसी अन्य वजह से अपने अंदर बुज़दिली महसूस करते हैं । अगर वे लोग होम्योपैथिक तरीक़े से लौकी को पोटेन्टाइज़ करके दवा बनाएं और इसका सेवन करें तो उनकी बीमारी दूर हो सकती है ।
होम्योपैथी में विश्वास रखने वाले ब्लॉगर्स इस ओर ध्यान दें तो चिकित्सा के मैदान में भी उपलब्धि की एक ऊँची छलाँग लग सकती है ।
'ऊँचाई से छलाँग' लगाने वाले का प्रमुख आहार लौकी का जूस था । उनके मन के निर्माण में लौकी का महत्वपूर्ण योगदान है । यह सारा ज़माना जानता है । ऐसे में यह प्रश्न उठना नेचुरल है कि क्या लौकी का जूस आदमी को बुज़दिल बना देता है ?अगर यह सही है तो हरेक क्राँतिकारी और सुधारक को लौकी के अत्यधिक सेवन से बचना चाहिए और जो लोग किसी अन्य वजह से अपने अंदर बुज़दिली महसूस करते हैं । अगर वे लोग होम्योपैथिक तरीक़े से लौकी को पोटेन्टाइज़ करके दवा बनाएं और इसका सेवन करें तो उनकी बीमारी दूर हो सकती है ।
होम्योपैथी में विश्वास रखने वाले ब्लॉगर्स इस ओर ध्यान दें तो चिकित्सा के मैदान में भी उपलब्धि की एक ऊँची छलाँग लग सकती है ।
mujhe nahi lagta lauki se bujdil banta hai koi aur jyada to aap hi jante hain .aabhar
ReplyDeleteमैं होम्योपैथी जानता हूँ. यदि कोई प्रशिक्षित होम्योपैथ डॉक्टर इसे स्वयं अप्रूव करे तो निश्चित रूप से लौकी को ही पोटेंटाइज़ करके दवा बन सकती है. शर्त एक ही है कि अप्रूवर प्रशिक्षित डॉक्टर (DHMS or BHMS) हो.
ReplyDeleteइसका दूसरा पक्ष यह भी है कि पोटेंटाइज़्ड लौकी खा कर मेरा शाकाहारी दिल चिकन खाने को करने लगे या छोटी-छोटी बात पर हिंसक होने लगे तो आप मुझे चिकन पोटेंटाइज़ करके खाने की सलाह देंगे क्या :)) वैसे यह गंभीर सुझाव है.
आपने बिल्कुल सही लिखा । ये तो बैठे बिठाए हौम्योपैथी में एक बीमारी का इलाज मिल गया
ReplyDeletesahi kaha jnab .akhtar khan akela kota rajsthan
ReplyDelete@ आदरणीय भूषण जी ! अगर आप चिकन-मटन को लौकी के साथ पकाकर खाएंगे तो न तो आप बुज़दिली के शिकार होंगे और न ही आपके स्वभाव में हिंसा की प्रधानता होने पाएगी। मांस के नकारात्मक पक्ष हिंसा का निराकरण लौकी करेगी और लौकी के नकारात्मक पक्ष बुज़दिली का निराकरण चिकन-मटन कर देगा। आपके स्वभाव में नकारात्मक पक्ष किसी का भी न आएगा जबकि सकारात्मक पक्ष दोनों के ही आ जाएंगे।
ReplyDeleteआप इस पोस्ट पर आए आपका स्वागत है।
यह हक़ीक़त है कि आज हर तरफ़ बीमारियों का बोलबाला है। दूसरी वजहों के साथ इसकी एक वजह यह भी है आज आदमी लगातार गेहूं, घी-तेल, मसाले, नमक, चीनी और चंद गिनी चुनी सब्ज़ियां ही खा रहा है। जब से वह खाना चबाना सीखता है तब से वह यही सब खा रहा है और आप जानते हैं कि अगर होम्योपैथिक तरीक़े से किसी दवा को उसके कच्चे रूप में केवल 3 माह तक लिया जाता है तो वह दवा इंसान के शरीर और मन पर अपने लक्षण प्रकट कर देती है। अब आप सोचिए कि जब 40 साल तक आदमी एक सी ही बल्कि एक ही चीज़ें लगातार खाता रहेगा तो क्या वे चीज़ें इंसान के शरीर और मन पर अपने गहरे असर न दिखाएंगी ?
लंबी लाइलाज बीमारियों के शिकार मरीज़ अगर वाक़ई तंदुरूस्त होना चाहते तो वे सबसे पहले ये सारी चीज़ें खाना छोड़ दें और उसके बाद वे ऐसी चीज़ें खाएं जो कि उन्होंने जीवन में बहुत कम खाई हों और जल्दी हज़्म हो जाती हों। इसके बाद अगर वे शहद और त्रिफला भी खाते रहें तो 3 महीने में ही उनकी पुरानी बीमारियां भी काफ़ी हद तक जाती रहेंगी।
आज आदमी बीमार नहीं है र्बिल्क ‘फ़ूड प्रूविंग‘ का शिकार है। यह मेरा अनुसंधान है। मैं इस सब्जेक्ट पर एक किताब भी लिखने वाला था लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग में आ फंसा।
मालिक ने बंदों को सेहतमंद रखने के लिए ही उसे मेहनत करने का हुक्म दिया और इसीलिए उसने अलग अलग मौसम में अलग अलग फ़सलें बनाईं। हरेक मौसम में इंसान की ज़रूरत उसी मौसम के फल सब्ज़ी आदि के ज़रिए पूरी होती हैं। हमारा आहार ही हमारे लिए बेहतरीन औषधि है लेकिन हमने अपनी नादानी की वजह से अपने आहार को आज अपने लिए ज़हर बना लिया है।
यह ज़हर इतना है कि इसे लैब में भी टेस्ट कराया जा सकता है। सब्ज़ी, दूध-पानी, मिट्टी और हवा हर चीज़ को ज़हरीला बनाने वाले हम ख़ुद ही हैं और फिर मौसम चक्र का उल्लंघन करके मनमर्ज़ी भोजन करने वाले नादान भी हम ही हैं। अगर हम अपनी ग़लती महसूस करें और तौबा करके अपने खान-पान को मौसम के अनुसार कर लें तो हम अपनी बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं।
भारतीय आयुर्वेदाचार्यों ने इस संबंध में बेहतरीन उसूल दिए हैं।
मिसाल के तौर पर उन्होंने कहा है कि
1. हितभुक 2. मितभुक 3. ऋतभुक
अर्थात हितकारी खाओ, कम खाओ और ऋतु के अनुकूल खाओ।
हमें अपने महान पूर्वजों की ज्ञान संपदा से लाभ उठाना चाहिए।
शुक्रिया !
सही कहां आपने सर...:)
Deleteआपने सही कहा. हम मौसम के अनुशासन को तोड़ चुके हैं. हमारा खाना यो तो स्टैपल फूड है या जंक फूड.
ReplyDeleteलौकी तो पता नहीं बुजदिल बनाती हैं या नहीं, मगर भैंसे का मांस खाने से दिमाग और शरीर दोनों ही भैंसे कि तरह हो जाते हैं. इसलिए दिमाग का सही जगह इस्तेमाल नहीं हो पता हैं.
ReplyDeleteअब ये मत कहियेगा कि कुछ लोगो इसे भी पेटेंट करवा रखा हैं.
रणभूमि से हटना बुजदिली नहीं होती, रणनीति होती है.
ReplyDeleteऔर आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि वही इंसान रो सकता है, जिसके सीने में एक नर्म दिल होता है. पत्थर कभी नहीं रोते.
आलेख अच्छा है!
ReplyDeleteमगर सभी लोग इससे सहमत नहीं होंगे!
क्योंकि सभी की खोपड़ी अलग-अलग होती है!
@ भाई तारकेश्वर जी ! भ्रष्टाचारियों को टक्कर मारने के लिए भैंसे जैसा ही व्यक्तित्व चाहिए। आपने भी हमारे विचार की पुष्टि ही की है।
ReplyDeleteहमने तो अपनी बात को चिकन-मटन तक ही सीमित रखा था लेकिन आपने भैंसे की ओर भी ध्यान दिला दिया। जो आदमी भैंसा न खा सके उसे भ्रष्टाचारियों के टक्कर मारकर अपनी खिल्ली उड़वाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
शुक्रिया !
@ आदरणीय मयंक जी ! आपने लेख को सराहा, आपका शुक्रिया !
ReplyDeleteज़रूरी नहीं है कि हरेक भाई-बहन हमसे सहमत हो। हम तो यह चाहते हैं कि हम अपने विचारों को शेयर करें और जो बात विज्ञान और तर्क के आधार पर सत्य सिद्ध हो जाए उसे हम स्वीकार कर लें। सभी बुद्धिजीवियों के विचारों का स्वागत है ताकि हरेक पहलू सबके सामने आ जाए।
भारतीय आयुर्वेदाचार्यों ने आहार संबंध में बेहतरीन उसूल दिए हैं
मैं होम्योपैथिक विश्वास करते हैं क्योंकि मैंने सुना है कि, लोगों की सबसे होम्योपैथिक के माध्यम से अपने रोग ठीक हो गया था. बाँटने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeletedomain hosting
@ जो आदमी भैंसा न खा सके उसे भ्रष्टाचारियों के टक्कर मारकर अपनी खिल्ली उड़वाने की कोई ज़रूरत नहीं है।
ReplyDeleteजी अन्ना हजारे के भोजन पर शोध करने की आवश्यकता है.... कितने भैंसा शहीद किये अब तक :)
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