Thursday, October 11, 2012

भोजन और पानी के ज़रिए अम्ल और क्षार को संतुलित करके बीमारियों से मुक्ति पाएं Acid & Alkaline Diet

इस संबंध में दो लेख साभार उदधृत किए जा रहे हैं-



क्या है पी एच या एसिड एल्केलाइन डाईट ? क्षारीय खुराक ?
(The acid factor in your food !Also known as the pH or the Acid -Alkaline diet ,this new diet aims at balancing the pH levels in the body)./बॉम्बे टाइम्स /दी टाइम्स ऑफ़ इंडिया मुंबई ,दिसंबर ११,२०११,पृष्ठ ११.
ज़ाहिर है विषय का प्रतिपादन करने से पहले यह बतलाया जाए यहाँ पीएच( का क्या अर्थ है . ?
किसी पदार्थ में अम्ल या क्षार के स्तर को मापने की इकाई है पी एच .७ से कम मूल्य अम्ल का और ७ से ऊपर मूल्य क्षार (Alkali )का संकेत करता है .लगे हाथ यह भी बतलादें कि खुद क्षार एक ऐसा रसायन है जो अम्ल के साथ अभिक्रिया करने पर लवण बनाता है .क्षार का पीएच मान सात से अधिक होता है .पीएच का विस्तार है : Potential of hydrogen.
Also pH is a measure of acidity or alkalinity in which the pH of pure water is 7 with lower numbers indicating acidity and higher numbers indicating alkalinity .Full form potential of hydrogen.
Diet theory:क्षारीय खुराक इस बुनियादी सिद्धांत या मत पर टिकी हुई है कि जैसे जैसे हम अम्लीय प्रकृति का भोजन ज्यादा मात्रा में लेने लगते हैं वैसे ही वैसे और उसी अनुपात में सेहत के लिए उलझाव और परेशानियां बढती चली जातीं हैं .
क्या कहतें हैं माहिर क्षारीय खुराक की बाबत ?
चमड़ी और केश विज्ञान के माहिर डॉ .जैश्री मनचंदा के अनुसार क्षारीय खुराक एक ऐसी खुराक है जिसका सारा जोर ताज़े फल और तरकारियों और मेवों पर रहता हैं नट्स को जो तरजीह देती है .जिसमे '[बीज वाली फलियों का लेग्युम्स (Legumes)का डेरा रहता है .
क्या है मूलभूत अवधारणा क्षारीय खुराक की ?
कुछ खाद्य पाचन के बाद अव -शेशीय प्रभाव में क्षारीय प्रभाव अपने पीछे छोड़ जातें हैं .यानी इनकी कुलमिलाकर क्षारीय असर ,तासीर रहती है . ऐसे खाद्य जो परिणामी अवशेष के रूप में क्षारीय असर छोड़तें हैं क्षारीय खुराक के तहत आतें हैं .ऐसी खुराक शरीर में अम्ल -क्षार संतुलन को बनाए रहती है .
प्राकृत चिकित्सा और पोषण विज्ञान के माहिर जैनब सैयद कहतें हैं :"The Alkaline diet maintains the balance of acid- base homeostais in the blood ,which is the balance of acids and bases (commonly known as pH) in the body .इस संतुलन के अभाव में शरीर अपने आपको कायम नहीं रख सकता .अम्लीय होने का मतलब है हमारे शरीर का pH मान आदर्श और एक मान्य pH मान से कम है .शरीर की आदर्श रूप में प्रकृति थोड़ी सी क्षारीय है इसका पीएच आदर्श मान ७.३५-७.४५ होना चाहिए .
अम्लीय और क्षारीय खाद्यों से क्या तात्पर्य है ?
अपनी मूल प्रकृति में खाद्य तीन प्रकार के हैं :
(१)शरीर पर पाचन के बाद उदासीन प्रभाव छोड़ने वाले यानी उदासीन Neutral foods .
(२ ) शरीर में अपने परिणामी असर में तेज़ाब छोड़ने वाले यानी Acid -forming .
(3)शरीर पर पाचन के बाद क्षारीय असर छोड़ने वाले यानी Alkalising .

बकौल डॉ .नूपुर कृष्णन तेज़ाब बनाने वाले खाद्य शरीर को हाइड्रोजन आयन प्रदान करतें हैं .जिससे शरीर थोड़ा और अम्लीय हो जाता है .जबकि क्षार बनाने वाला खाद्य हाइड्रोजन आयनों को शरीर से विस्थापित करता है हटाता है .यानी शरीर की अम्लीयता को कम करता है .
आम गलत धारणा यह है कि यदि कोई खाद्य अपने स्वभाव और स्वाद में अम्लीय है खट्टा है तब वह शरीर में ज्यादा तेज़ाब बनाता है .दरअसल अम्लीय और क्षारीय भोजन का वर्गीकरण शरीर पर पाचन के अनंतर पड़ने वाला परिणामी असर पर आधारित है न कि खाद्यों के अपने अंतरजात स्वाद पर .उनकी अपने खट्टे या क्षारीय पन पर उनकी intrinsic acidity और alkalinity से इस वर्गीकरण का कोई लेना देना नहीं है .
मसलन आम तौर पर स्वाद में खट्टे यथा नीम्बू वंशीय (खट्टा और मीठा नीम्बू यानी lemon and lime ,तथा grapefruit melons को इनके स्वाद की वजह से ही अम्लीय प्रकृति का मान लिया जाता है जबकि पाचन के बाद इनका खनिजीय अवयव Mineral content क्षारीय साबित होता है क्षार युक्त होता है .क्षार ही बनाता है .
कैसे असर करती है काम करती है क्षारीय खुराक ?
इसका लब्बोलुआब सारा संकेन्द्रण शरीर के पीएच स्तर के संतुलन को कायम रखना है .कोशाओं की पुनर संरचना पुनर -निर्माण करना है .ऊतकों का पुनर -निर्माण कर मजबूती प्रदान करना है .आखिर में एक तंदरुस्त काया के रख रखाव में विधयाक सिद्ध होना है .
सैयद के नुसार आपका शरीर अम्लीय होने पर बीमारियों का घर बन जाता है .रोग मौक़ा देखके शरीर को निशाना बनाने लगतें हैं .
डॉ .मनचंदा इसीलिए इस खुराक की सिफारिश करती हैं क्योंकि इस पर कायम रहना आसान है .कोशाओं के सुचारू काम करने के लिए शरीर से विषाक्त पदार्थों की निकासी शरीर को detox करना ज़रूरी है .यह खुराक ऐसा करने में कारगर रहती है .
अलावा इसके मुक्तावली को स्वास्थ्य और मजबूती प्रदान करती है क्षारीय खुराक .जबड़ों को यथा स्थान सुदृढ़ बनाए ज़माए रहती है .
दर्द के एहसास को घटाती है बुढापे को मुल्तवी रखती है बुढ़ाने की रफ़्तार को ब्रेक लगाती है .खाने के उचित पाचन में मददगार है यह खुराक .कुलमिलाकर आपको एक चारु और छरहरी काया देने बनाए रखने में बड़े काम की है यह खुराक .
लाभ और नुकसानात क्या हैं pH या Acid-Alkaline diet के ?
श्रेष्ठ पाचन ,पुनर -ऊर्जित होते रहना ,ऊर्जा (दमखम )स्तर कायम रखना ,तौल को कम रखना यानी वेट लोस ,पीड़ा का कमतर एहसास होना हाइपर टेंशन का काबू में रहना तथा ब्लड सुगर लेविल्स का बेहतर प्रबंधन .दांतों और ज़ब्डों की मजबूती के प्रति बे -फिक्री .बेहतर रोग -रोधी तंत्र .बुढापे को लगाम .और क्या बच्चे की जान लोगे .इतना कॉफ़ी नहीं है .एक खुराक से और क्या क्या लोगे ?
अति यहाँ भी ठीक नहीं . क्षारऔर अम्लीय खाद्य का अनुपात भोजन में ८० :२० रहना ही चाहिए .यानी ८०%क्षार पैदा करने वाले और २०%अम्लीय प्रकृति के खाद्य भोजन में शरीक रहने चाहिए .कुछ fats तथा oils जो Alkaline खुराक में सीमित रखे जातें हैं ज़रूरी वसीय अम्ल बनातें हैं ,तंदरुस्त कोशाओं का निर्माण करतें हैं , वैज्ञानिक रिसर्च से अभी सभी बताए गए लाभों की पुष्टि नहीं हुई है .और अध्ययन ज़रूरी हैं .
Virendra Kumar Sharma
http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2011/12/blog-post_12.html

एसिडिटी का सरल प्राकृतिक इलाज 

अम्लता रोग (एसिडिटी) आज के आधुनिक युग का बहु-प्रचलित रोग है। यह भोजन की अधिकता एवं व्यायाम के अभाव के कारण होते हैं। वैसे तो वात (गैस), पित्त (अम्ल) व कफ शरीर में हमेशा मौजूद रहते हैं। यदि इनमें असंतुलन आ जाता है व किसी की मात्रा सर्वाधिक हो जाती है तो हम उसे उस रोग के नाम से जानते हैं। युवा अवस्था में प्रायः तले-भुने हुए खाद्य पदार्थ, चाय, कॉफी व अन्य मादक द्रव्यों का सेवन अधिक करता है। इस वजह से उम्र के इस पड़ाव पर प्रायः युवा अम्ल रोग के शिकार होते हैं। वैसे ऐसिडिटी कब्ज का ही स्वरूप है।

शरीर में अम्ल के ज्यादा होने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। शरीर का क्षारत्व कम होने से शरीर चर्म रोग, गठिया, वायु रोग व अनेकानेक रोगों का शिकार हो जाता है। प्राकृतिक रूप से रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है। अम्लता केवल रक्त के कसार व अम्ल के मध्य संतुलन लाने का प्रयास है, उक्त रोग हमें सूचित करता है कि शरीर में अम्लता बढ़ गई है।

जागो, शरीर को क्षारीय आहार उपलब्ध कराओ ताकि शरीर में अम्ल बढ़ने से जो दुष्प्रभाव हो रहे हैं उन्हें अविलंब रोका जा सके। यदि संकेत मिलते ही आहार में क्षारीय आहार की मात्रा को बढ़ा दी जाए तो शरीर अम्लता के रोग से मुक्त हो जाता है। वैसे प्रकृति हमें जीवन में हर बार विभिन्ना लक्षणों जैसे डकार, उबासी, थकान, सिरदर्द, सर्दी व अन्य लक्षणों के माध्यम से शरीर के अंदर हो रहे व संभावित रोगों की जानकारी देती रहती है, किंतु हम प्रायः प्रकृति के संकेतों का उल्लंघन कर अपने आपको गंभीर रोगों का शिकार बनाते रहते हैं।

शरीर में अम्ल के ज्यादा होने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। शरीर का क्षारत्व कम होने से शरीर चर्म रोग, गठिया, वायु रोग व अनेकानेक रोगों का शिकार हो जाता है। प्राकृतिक रूप से रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है। अम्लता केवल रक्त के कसार व अम्ल के मध्य संतुलन लाने का प्रयास है, उक्त रोग हमें सूचित करता है कि शरीर में अम्लता बढ़शरीर में अम्ल के ज्यादा होने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। शरीर का क्षारत्व कम होने से शरीर चर्म रोग, गठिया, वायु रोग व अनेकानेक रोगों का शिकार हो जाता है। प्राकृतिक रूप से रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है। अम्लता केवल रक्त के कसार व अम्ल के मध्य संतुलन लाने का प्रयास है, उक्त रोग हमें सूचित करता है कि शरीर में अम्लता बढ़ गई है।

रक्त की अम्लता को कम करने का सबसे सरल उपाय है कि भोजन में फल व सब्जियों की मात्रा को बढ़ा दिया जाए। हमारे भोजन का कुल ८० प्रश क्षारीय आहार होना चाहिए। जिससे प्रकृति द्वारा प्रदत्त समस्त आहार उसके मूल स्वरूप में क्षारीय आहार हैं। फल, सब्जियाँ, अंकुरित अनाज, पानी में गले किशमिश, पानी में गले हुए अंजीर व गाय का धारोष्ण दूध क्षारीय आहार की श्रेणी में आते हैं।

मनुष्य द्वारा निर्मित समस्त खाद्य पदार्थ(दाल,चावल,मिक्सचर,कचोरी,चपाती,सेव,कॉफी,चाय,शराब,तंबाकू व अन्य आहार)अम्लीय आहार की श्रेणी में आते हैं। प्रायः,हमारा आहार 80 से 90 प्रतिशत अम्लीय होता है और महज दस प्रतिशत ही क्षारीय होता है। कई मामलों में तो 10 प्रतिशत आहार भी क्षारीय नहीं होता। जब हमारे आहार का 100 प्रतिशत हिस्सा अम्लीय होगा तो कैसे हमारे रक्त की प्रकृति क्षारीय हो सकती है?

बीमार होने पर हमारा सम्पूर्ण आहार क्षारीय हो जाता है। जैसे-जैसे हम फल और सब्जियों की पर्याप्त मात्रा का सेवन करने लगते हैं,रक्त का स्वभाव भी क्षारीय होता जाता है। जैसे ही रक्त का स्वभाव क्षारीय होता है,जब रोगमुक्त हो जाते हैं।

जिस समय शरीर में अम्लता की मात्रा बहुत अधिक हो,उस समय खट्टे पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। इस अवस्था में कुछ दिनों तक दूध,मौसम्बी,पपीता,केला,सेवफल,पका केला,अनार,खीरे का रस,गाजर का रस,तरबूज,किशमिश व खजूर का सेवन किया जा सकता है। कुछ दिनों तक उक्त आहार का सेवन करने के बाद,टमाटर व नींबू का सेवन किया जाना चाहिए ताकि रक्त का स्वभाव पूर्ण रूप से क्षारीय हो जाए। नींबू के बारे में भ्रांति है कि एसिडिटी में इसका सेवन नहीं करना चाहिए जबकि सच्चाई इसके विपरीत है।

नींबू का स्वाद तो अम्लीय है किंतु इसकी प्रकृति क्षारीय है, क्योंकि प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार प्रातःकाल शरीर में अम्ल की मात्रा न्यूनतम स्तर पर होती है और यदि नियमित रूप से नीबू का प्रातःकाल खाली पेट सेवन किया जाए तो अम्लता से शीघ्र मुक्ति मिल जाती है। नींबू के रस का गुनगुने जल के साथ सेवन करना चाहिए। इसके साथ शहद का भी सेवन किया जाए तो लाभ द्विगुणित हो जाता है। यदि सर्दी प्रकृति के रोगी इसमें अदरक का रस मिला लें,तो उन्हें सर्दी से भी मुक्ति मिल जाती है। भोजन के साथ नींबू का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से पाचन विलम्बित होता है और गैस की पूर्ण आशंका हो जाती है।

प्रायःयह देखा गया है कि शरीर में अम्लता बढ़ने पर सोडा(सोडियम बायकार्बोनेट)का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग तात्कालिक लाभ तो दे सकता है किंतु बाद में अधिक अम्ल पैदा होने लगता है। अतः,अम्लता की स्थिति में सोडे का प्रयोग गलत ही नहीं,शरीर को नुकसान पहुंचाने वाला भी है।

जैतून का तेल भी अम्लता के निदान में सहायक है। भोजन के एक घंटे पूर्व 10 मिली. जैतून तेल का सेवन करने से आंतों को स्निग्धता प्राप्त होती है और पेट की अच्छी सफाई हो जाती है। जैतून का तेल हल्का,सुपाच्य,स्निग्धकारी व शरीर को शक्ति प्रदान करने वाला होता है।

अम्लता रोगी के लिए नारियल और नारियल का पानी श्रेष्ठ आहार है। नारियल में 50 प्रतिशत तक वसा होता है जो आंतों को स्निग्धता प्रदान करता है।

अम्लता के रोगी को चावल का सेवन पर्याप्त सब्जियों के साथ करना चाहिए और एकबार में ही खाने की बजाए थोड़ा-थोड़ा कर खाना चाहिए। प्रातःकाल गुनगुने जल का सेवन करने से भी अम्लता कम होती है। ठंडे पानी का सेवन करने से अम्ल का स्त्राव अधिक होता है।

पेट में जलन,आंखों का लाल होना,अधिक गर्मी का लगना,त्वचा का रूखापन आदि अम्लता के लक्षण हैं। अतः,अम्लता प्रकट होते ही मिर्च,मसाले,शक्कर,चाय,मांस,मदिरा और अन्य मादक पदार्थों का सेवन अविलंब बंद कर देना चाहिए।

योग से दूर करें एसिडिटी
प्राकृतिक चिकित्सा एवं योग का साथ काफी पुराना है। प्राकृतिक चिकित्सा में कुंजल क्रिया को हाईपर एसिडिटी पर काबू पाने के लिए सुझाया जाता है। इसमें सुबह खाली पेट खूब सारा पानी पीने के बाद मुंह में उंगली के जरिए उल्टी की जाती है। इससे पेट में भरा हुए पानी के साथ रात भर में इकट्ठा हुआ एसिड बाहर आ जाता है। चिकित्सा विज्ञान मानता है कि सोते समय एसिडिटी बढ़ जाती है। यही वजह है कि हमारे देश में रात को सोने से पहले दूध पीने की सलाह दी जाती है।

प्राणायाम करें : हाईपर एसिडिटी के तत्काल इलाज के लिए दो तरह के प्राणायाम करने के लिए कहा जाता है। पहली तरह के प्राणायाम में दोनों होंठ खुले रखते हुए अपने जबड़ों को बंद कर लें। अब दाँतों के बीच से श्वास खींचें। इससे मुंह के गीलेपन में लिपटी हवा फेफड़ों तक पहुंचेगी। इससे पेट की जलन में तत्काल फायदा होता है। श्वास मुंह के जरिए लेना है और नाक से छोड़ना है। इसके अलावा दूसरे आसन में जीभ को गोल पाइप की तरह सिकोड़ लें। होंठ खुले रखते हुे अब श्वांस भरें, इसे फेफड़ों में रोकें और नाक के जरिए छोड़ दें।

सर्दियों का मेवा-पिंड खजूर
पिंडखजूर ठंड के दिनों में पूरे भारत में आसानी से उपलब्ध रहता है। इसका वृक्ष ३० से ४० फुट लंबा, ३ फुट चौड़ा हल्का भूरा रंग व पत्तियाँ १० से १५ फुट लंबी होती हैं। यह १ से डेढ़ इंच लंबा, अंडाकार आकार व गहरे लाल रंग का फल होता है। पिंडखजूर के अंदर का बीज अत्यधिक कड़क रहता है।

पिंड खजूर इनके कार्य में भी सहायक
लिवर : यकृत के कार्य के लिए आवश्यक पाचक रस को बढ़ाने में मदद करता है।

कब्जियत : फाइबर की अधिकता होने के कारण कब्जीयत दूर करता है।

वजन बढ़ाने में: कार्बोहाइड्रेड व कैलोरी की मात्रा ज्यादा होने के कारण वजन बढ़ाने में सहायक।

तंत्रिका तंत्र : शकर की मात्रा अधिक होने के कारण मस्तिष्क क्रियाओं की क्षमता बढ़ाने में सहायक।

मिनरल : आयरन व कैल्शियम की अधिक मात्रा होने के कारण शरीर में खून बढ़ाने व हड्डियों को मजबूत करने में सहायक।

अन्य लाभ 
थकान व चक्कर दूर करता है।
शरीर में रक्त संचार की क्रिया में मजबूती प्रदान करता है।
संक्रामक रोग, जैसे सर्दी, खाँसी, जुकाम, बुखार से बचाव।


पिंड खजूर में पोषक तत्वों की मात्रा
प्रोटीन - १.२ प्रतिशत

फेटी एसिड- ०.४ प्रतिशत

कार्बोज - ८५ प्रतिशत

मिनरल - १.७ प्रतिशत

कैल्शियम - ०.०२२ प्रतिशत

पोटेशियम - ०.३२ प्रतिशत

कैलोरी        -  ३१७

(डॉ. सुनीता जोशी तथा डॉ. संगीता मालू का यह आलेख सेहत,नई दुनिया,दिसम्बर,2010 तृतीय अंक में प्रकाशित है)
प्रस्तुतकर्ता Kumar Radharaman
http://upchar.blogspot.in/2011/01/blog-post_922.html

4 comments:

  1. इतनी लाभकारी जानकारी के लिए धन्यवाद. मैंने पूरी लाइफ में आज तक ४-५ बार ही पिंड खजूर खाएं हैं क्युकी इसके चिप चिप से खाने की इच्छा नहीं होती थी. लेकिन अब खाया करूँगा.

    ReplyDelete
  2. बहुत उपयोगी जानकारी.

    ReplyDelete
  3. उपयोगी जानकारी के लिए आपका आभार

    ReplyDelete
  4. nice sir tell me the natural treatment of ddnl ulcer

    ReplyDelete