Sunday, March 13, 2011

भारतीय वैद्य और हकीम सदा से करते आ रहे हैं नपुंसकता का इलाज Erectile disfunction

सभी जानते हैं कि जो औज़ार कभी कभार इस्तेमाल किए जाते हैं उन्हें ज़ंग (Rust) लग जाता है और जो औज़ार नियमित रूप से और सही तरीक़े इस्तेमाल किए जाते हैं वे अपनी क्षमता को बनाए रखते हैं। मानव अंगों के बारे में भी यह बात सटीक बैठती है ।
अंगों को अपने काम अंजाम देने के लिए जो ऊर्जा चाहिए होती है वह उन्हें भोजन और पानी से मिलती है। इस रहस्य का पता भारत के वैद्य और हकीम बहुत पहले ही लगा चुके हैं और यही वजह है कि उन्होंने पथ्यापथ्य यानि भोजन में परहेज़ और चुनाव पर बहुत ज़ोर दिया। उन्होंने लोगों को अपने आहार में माँस , शहद , अंजीर , लहसुन , प्याज़ और अंडों का इस्तेमाल करने की सलाह दी और यह भी बताया कि दूसरे क्षेत्रों की तरह यहाँ भी अति वर्जित है। जो लोग इन चीजों के गुणों से अन्जान थे उन्होंने विभिन्न कारणों से इन चीज़ों के खाने पर प्रतिबंध लगा दिया और लोगों की यौन क्षमता को अपनी नादानी की वजह से कमजोर कर डाला जिससे उनका गृहस्थ जीवन बर्बाद होकर रह गया ।
वैद्य और हकीम भारतीय नर नारियों को जिन बीमारियों से मुक्ति दिलाते आए हैं , उनमें बाँझपन , शुक्राणुओं की कमी और ध्वजभंग ED भी हैं।
एक नौजवान हिंदू लड़का मेरे पास शुक्राणुओं की कमी की समस्या लेकर आया तो मैंने उसके वीर्य की जाँच रिपोर्ट देखी । रिपोर्ट के अनुसार शुक्राणु केवल 35 प्रतिशत थे। वह एक गरीब युवक था । सो जाहिर है कि मुनाफ़ाख़ोर ऐलोपैथ को उसमें कोई दिलचस्पी न थी और एक जगह से वह आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट भी ले चुका था। मैंने उसे मालिक का नाम लेकर 'शक्रवल्लभ रस और मूसली पाक' का सेवन कराया और 15 दिन के बाद जाँच रिपोर्ट में शुक्राणु 65 प्रतिशत हो चुके थे ।
क्या आप जानते हैं कि शक्रवल्लभ रस के घटक क्या है ?
आयुर्वेद सार संग्रह पृष्ठ 392 पर आप स्वर्ण भस्मादि अन्य सभी दवाओं की जानकारी हासिल कर सकते हैं ।
इन्हीं घटकों से हकीम साहब भी इन्हीं बीमारियों के लिए दवाएँ बनाते हैं। इस आयुर्वेदिक औषधि के बहुत सारा गुणगान करने के बाद अंत में लिखा है कि
'यह रसायन अत्यंत स्तंभक , बाजीकरण और स्त्रियों के मद को नष्ट करने वाला है।'
मैंने अपने अनुभव से पाया है कि ये सभी दावे सच हैं।