भारत में ज्यादातर लोग मांसाहारी हैं यानि कि ऐसे लोग हैं जो कि अनाज और सब्ज़ी के साथ अंडा, मुर्ग़ा, मछली और बकरा वग़ैरह का मांस खाते हैं। इनके दरम्यान एक छोटी सी तादाद ऐसे लोगों की भी है जो कि मुर्ग़ा-मछली वग़ैरह का मांस नहीं खाते लेकिन अंडा खा लेते हैं और कुछ इस मामले में इतने ज़्यादा अतिवादी हैं कि वे अंडा तक नहीं खाते। इन शाकाहारियों में कुछ अपने अतिवाद में इतने ज़्यादा बढ़ जाते हैं कि वे गेहूं, चावल और सब्ज़ी भी केवल दो चार निवाले ही खाते हैं। जिससे उनके शरीर को पूरा पोषण नहीं मिलता। ऐसा वे अपनी दार्शनिक मान्यताओं के चलते करते हैं। उचित पोषण न मिल पाने से वे बीमार पड़ जाते हैं और तब वे न किसी दवा से ठीक हो पाते हैं और न ही योग से।
योग से सब रोग ठीक होने का दावा बाबा रामदेव करते हैं लेकिन उन्होंने जिस गुरू से योग सीखा था। वह बीमार ही पड़े रहते थे और फिर अचानक एक दिन लापता हो गए। योग की कोई विधि बाबा रामदेव के योग-गुरू को रोगमुक्त न कर सकी। अनशन के कारण शाकाहारी बाबा रामदेव भी बीमार पड़ गए और वे योग से ठीक नहीं हो पाए। तब एलोपैथी डाक्टरों ने उन्हें अंग्रेज़ी दवाएं दीं और इस तरह उनके प्राण बचे।
इसका मतलब यह नहीं है कि मांसाहार सेहत की गारंटी है। विश्व में भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले स्वामी विवेकानन्द जी मांस का सेवन करते थे लेकिन फिर भी उन्हें 39 साल की उम्र में 33 बीमारियों से जूझना पड़ा। सवाल साग या मांस का नहीं है बल्कि उचित पोषण का है।
मॉडर्न साइंस ने हमें बताया है कि हमारे शरीर को अपनी क्रियाएं संपन्न करने के लिए कुछ तत्वों की ज़रूरत पड़ती है। अगर ये तत्व हमारे शरीर को नहीं मिलते तो फिर हमारे अंग अपने काम सही तरह से नहीं कर पाते। जिसे हम बीमारी का नाम देते हैं। अपने खाने पीने के ज़रिये इन ज़रूरी तत्वों को लेकर हम बीमारी से अपना बचाव कर सकते हैं।
दुख की बात यह है कि मांस खाने वाले और मांस न खाने वाले दोनों तरह के लोग इस सिलसिले में कोई ध्यान नहीं देते और इसके नतीजे में वे बीमार पड़ते रहते हैं। जो लोग एजुकेटिड हैं वे इस सिलसिले में अनपढ़ों जैसा ही बर्ताव करते हैं।
हिन्दू दर्शन में भी धी-विद्या अर्थात बुद्धि और विद्या को धर्म का लक्षण माना गया है लेकिन फिर भी ख़ासो-आम हिन्दुओं के भोजन में बुद्धि और विद्या का प्रयोग देखने में नहीं आता। यही हाल मुसलमानों का है। इसलाम में इल्मो-हिकमत यानि ज्ञान और तत्वदर्शिता को ईमान वालों का गुण क़रार दिया गया है लेकिन आम तौर पर मुसलमान भी इल्मो-हिकमत के मुताबिक़ नहीं खाते हैं। यही हाल ईसाईयों और दूसरी कम्युनिटीज़ का है।
इस सिलसिले में जनमानस में एक भ्रान्ति यह भी फैली हुई है कि शाकाहार से इंसान सेहतमंद बना रहता है लेकिन हक़ीक़त यही है कि बुद्धि और विद्या के बिना किया जाने वाला शाकाहार इंसान को बीमार करता है।
इस विषय में एक ताज़ा रिसर्च देखी जा सकती है-
शाकाहारी लोग रखें विटामिन बी-12 का खास ध्यान
क्या आपने हाल में विटामिन बी-12 के स्तर की जांच करवायी है? दिल्ली की एक 37 वर्षीय गृहिणी पिछले छह माह से अपने मूड में तेजी से आने वाले उतार-चढ़ाव से परेशान थीं। अंत में वे मनोचिकित्सक के पास गयीं। मनोचिकित्सक ने सबसे पहले हारमोन असंतुलन और पोषण की कमी को जानने के लिए ब्लड टेस्ट करवाने की सलाह दी। विटामिन बी-12 की कमी को छोड़ कर पूरी ब्लड रिपोर्ट सामान्य रही। बी-12 का स्तर 70पीजी/ एमएल पाया गया, जबकि सामान्य स्तर 250 पीजी/ एमएल माना जाता है। मनोचिकित्सक ने उन्हें विटामिन बी-12 के 10 इंजेक्शन और 20 दिन तक नियमित विटामिन बी-12 की टेबलेट लेने को कहा।
क्यों जरूरी है विटामिन बी-12
शरीर में विटामिन बी-12 की पर्याप्त मात्रा हमारे तंत्रिका तंत्र और रक्त कणिकाओं को सही तरीके से काम करने में मदद करती है। शरीर में डीएनए स्ट्रेंड्स के निर्माण के लिए भी इस विटामिन की जरूरत होती है। यदि शरीर में विटामिन बी-12 की मात्र का ध्यान न रखा जाए तो इससे तंत्रिका तंत्र को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक संजय चुघ के अनुसार, ‘भारत में पुरुष व महिला दोनों में सामान्य रूप से विटामिन-12 की कमी देखने को मिलती है। मेरे पास आने वाले मरीजों को सबसे पहले मैं विटामिन बी-12 की जांच कराने की सलाह देता हूं। कई बार विटामिन बी-12 की कमी पाए जाने पर सामान्य बी-12 सप्लीमेंट्स लेने से ही मूड के उतार-चढ़ाव व रोने की समस्या का हल हो जाता है।
शरीर में विटामिन बी-12 की काफी कमी होने पर इंजेक्शन लगाए जाते हैं। हमारे यहां विटामिन बी-12 की कमी के मामले अधिक हैं, जिसका कारण बड़ी संख्या में लोगों का शाकाहारी होना है।’
शरीर में विटामिन बी-12 की पर्याप्त मात्रा हमारे तंत्रिका तंत्र और रक्त कणिकाओं को सही तरीके से काम करने में मदद करती है। शरीर में डीएनए स्ट्रेंड्स के निर्माण के लिए भी इस विटामिन की जरूरत होती है। यदि शरीर में विटामिन बी-12 की मात्र का ध्यान न रखा जाए तो इससे तंत्रिका तंत्र को स्थायी नुकसान पहुंच सकता है। प्रसिद्ध मनोचिकित्सक संजय चुघ के अनुसार, ‘भारत में पुरुष व महिला दोनों में सामान्य रूप से विटामिन-12 की कमी देखने को मिलती है। मेरे पास आने वाले मरीजों को सबसे पहले मैं विटामिन बी-12 की जांच कराने की सलाह देता हूं। कई बार विटामिन बी-12 की कमी पाए जाने पर सामान्य बी-12 सप्लीमेंट्स लेने से ही मूड के उतार-चढ़ाव व रोने की समस्या का हल हो जाता है।
शरीर में विटामिन बी-12 की काफी कमी होने पर इंजेक्शन लगाए जाते हैं। हमारे यहां विटामिन बी-12 की कमी के मामले अधिक हैं, जिसका कारण बड़ी संख्या में लोगों का शाकाहारी होना है।’
विटामिन बी-12 पानी में घुलनशील है। यह मुख्यत: मीट, मछली, दूध व उसके उत्पादों और वेजिटेरियन फोर्टिफाइड फूड में पाया जाता है। पर शाकाहारी उत्पादों में पाए जाने वाले विटामिन बी-12 की तुलना में गैर शाकाहारी उत्पादों जैसे सालमन और लिवर वसा में यह अधिक होता है। शाकाहारी फोर्टिफाइड चीजें जैसे सोया और ओट्स भारत में कम खाई जाती हैं। यही वजह है कि शाकाहारी लोगों को विटामिन बी-12 से युक्त चीजों को खाने की सलाह दी जाती है।
विटामिन बी-12 के लक्षण मुख्यत: त्वचा का पीलापन, सांस लेने में बाधा, नसों में दर्द, कमजोरी, वजन की समस्या, दृष्टिदोष आदि के साथ डिप्रेशन, हिंसक व्यवहार, व्यक्तित्व में बदलाव और हेल्यूसिनेशन जैसी मानसिक समस्याओं के रूप में दिखता है। हाथ और पैर में लगातार सनसनाहट रहती है।
चुनौती क्यों?
हमारा शरीर पेट में विभिन्न एसिड और एंजाइम की मदद से भोजन में मौजूद विटामिन बी-12 को प्रोटीन से अलग करता है। 50 की उम्र के बाद से शरीर में इन एसिड का उत्पादन घटना शुरू हो जाता है, जिसकी पूर्ति के लिए डॉक्टर सप्लीमेंट्स लेने की सलाह देते हैं।
हमारा शरीर पेट में विभिन्न एसिड और एंजाइम की मदद से भोजन में मौजूद विटामिन बी-12 को प्रोटीन से अलग करता है। 50 की उम्र के बाद से शरीर में इन एसिड का उत्पादन घटना शुरू हो जाता है, जिसकी पूर्ति के लिए डॉक्टर सप्लीमेंट्स लेने की सलाह देते हैं।
हिन्दुस्तान, हिन्दी दैनिक अंक 20 दिसंबर 2013